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मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

हमे मुद्दत हुआ एक-दुसरे को देखे

माना 
हमे मुद्दत हुआ 
एक-दुसरे को देखे 

हमारी शक्लें बदली होंगी 
हमारा हावभाव और व्यवहार 
बहुत तक बदल ही गया है 

क्या मिलने आओगी 
सर पर ओढ़नी डाल
जिन्दगी के चिलचिलाती धुप में 
कभी 

नही मिलने ना सही 
बस हाल-चाल पूछने 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...