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बुधवार, 17 अक्तूबर 2018

तेरा मुखड़ा



अँधेरे में
तेरा मुखड़ा, चमकता है
चाँद जैसे

मै देख भी नही पाता
जी-भरके
कि अचानक से
गुम हो जाता है
तेरा चाँद का मुखड़ा
अँधेरे में.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...