सोमवार, 20 सितंबर 2021

मैं हमेशा तुम्हें खुश देखना चाहता हूँ


 तेरे चुप रहने से

मेरा मन संशय में रहता हैं

होंठो पर 
जब नही खिंचती हँसी की लकीर
सोचता हूँ 
कि कुछ तो गलत कर दिया हैं मैंने।

मैं हमेशा तुम्हें खुश देखना चाहता हूँ
और खुशियां ही खुशियां भेट करना चाहता हूँ 
तुमको।

 _रवीन्द्र भारद्वाज_

शुक्रवार, 10 सितंबर 2021

सुबह और कली

 

सुबह 

मेरी खिड़की की पल्लों पर 

ठहरी हैं 

कि कब खोलूंगा मैं खिड़की 


कली 

बाँहें अपनी खोल, खड़ी है

कि कब समाउंगा मैं 

उसमें।


_रवीन्द्र भारद्वाज_

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...