तेरे चुप रहने से
मेरा मन संशय में रहता हैं
होंठो पर
जब नही खिंचती हँसी की लकीर
सोचता हूँ
कि कुछ तो गलत कर दिया हैं मैंने।
मैं हमेशा तुम्हें खुश देखना चाहता हूँ
और खुशियां ही खुशियां भेट करना चाहता हूँ
तुमको।
_रवीन्द्र भारद्वाज_
प्रेम अनुभूति का विषय है..इसीलिए इसकी अभिव्यक्ति की जरूरत सबको महसूस होती है.. अतः,अपनी मौलिक कविताओं व रेखाचित्रो के माध्यम से, इसे अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा हू मैं यहाँ.
सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो बहार होती बेरुत भी सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना ज्यादा मायने नही रखता यार ! यादों का भी साथ बहुत होता...
होंठो पर
जवाब देंहटाएंजब नही खिंचती हँसी की लकीर
सोचता हूँ
कि कुछ तो गलत कर दिया हैं मैंने।
प्रेम की पराकाष्ठा...
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर।
जी आभार आपका सादर 🙏
हटाएंThanks for the article really help me
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