मुझसे मिलना
ये मेरे दोस्त !
फुर्सत निकालके
पर तुम्हे तो फुर्सत ही नही
कि
कभी तुम भी जाहिर करो
मिलने का मन
व्यस्तता की फ़सल लहलहा रही हैं
देखो
हर तरफ
हर घर, कुल, समाज
यहांतक कि गाँव भी व्यस्तता में मग्न हैं
उस बरगद के तरफ कोई थूकता नही
जिस बरगद के नीचे चौपाले बिछती थी
बातों-बातों में
सुबह-शाम गुजर जाती थी
हमारे बाप, ददाओ की.
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
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