शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

मुझसे मिलना ये मेरे दोस्त !

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मुझसे मिलना 
ये मेरे दोस्त !
फुर्सत निकालके

पर तुम्हे तो फुर्सत ही नही 
कि
कभी तुम भी जाहिर करो 
मिलने का मन 

व्यस्तता की फ़सल लहलहा रही हैं 
देखो 
हर तरफ 

हर घर, कुल, समाज 
यहांतक कि गाँव भी व्यस्तता में मग्न हैं 

उस बरगद के तरफ कोई थूकता नही 
जिस बरगद के नीचे चौपाले बिछती थी 
बातों-बातों में 
सुबह-शाम गुजर जाती थी 
हमारे बाप, ददाओ की.
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


6 टिप्‍पणियां:

  1. व्यस्तता की फ़सल लहलहा रही हैं
    देखो
    हर तरफ
    बहुत सुंदर ...।

    जवाब देंहटाएं
  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 02/02/2019 की बुलेटिन, " डिप्रेशन में कौन !?“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ब्लॉग बुलेटिन में यह रचना संकलित करने के लिए सह्दय आभार....... आदरणीय।

      हटाएं
  3. गावों के बदलते परिवेश पर छोटी पर सशक्त रचधा ।
    बहुत सुंदर

    जवाब देंहटाएं

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