बेटी
कल विदा होगी
आज जश्न का माहौल हैं
और ठुमक-ठुमककर नाँच रहा हैं
बंदरवाला नाँच
हरकोई
हर कोई
इस बात से अनभिज्ञ हैं
कल विदा होंगी
बेटी
ऐसे शहर को
जिसे पर्यटक के तरह भी नही घुमा हैं
उसने
कि कैसे बंद करके रख ली हैं आँसू
अपने पर्श में
कोई खंगालना भी नही चाहता
कि उसमे कितना दर्द हैं
बेगाने शहर को रुखसत होने से पहले
सिसकते हुए
मैंने देखा था उसे
खिड़की से बाहर तांकते हुए
शून्य में
आखिर उसे शून्य से ही शुरुआत करनी होंगी
रिश्ते-नाते
घर-परिवार
यहाँतक कि जिन्दगी भी
बेटी
कल विदा होंगी
और हँसनेवाले भी रोयेंगे
बेवजह
जबकि वजह तो
नई बहुरिया को तलाशनी होंगी.
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
बहुत गहराई समेटे मर्मस्पर्शी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक एवं सार्थक रचना...
जवाब देंहटाएंमैंने देखा था उसे
खिड़की से बाहर तांकते हुए
शून्य में
आखिर उसे शून्य से ही शुरुआत करनी होंगी
सटीक... वाह!!!
जी बहुत-बहुत आभार आदरणीया
हटाएंकैसे बंद करके रख ली हैं आँसू
जवाब देंहटाएंअपने पर्श में
बहुत सुंदर और मार्मिक
जी सहृदय आभार आदरणीया
हटाएंआज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २३५० वीं बुलेटिन ... तो पढ़ना न भूलें ...
जवाब देंहटाएंतेरा, तेरह, अंधविश्वास और ब्लॉग-बुलेटिन " , में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
"ब्लॉग-बुलेटिन " में इस रचना को संकलित करने के लिए आभार......सादर
हटाएंकाहे को ब्याही बिदेस, रे लखि बाबुल मोरे!
जवाब देंहटाएंएक शाश्वत प्रश्न और उस से जुड़ी एक शाश्वत समस्या !
बहुत सुन्दर !
हृदयतल से आभार आदरणीय
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार .....आदरणीय सादर
हटाएंमर्मस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंजी बहुत-बहुत आभार आदरणीया
हटाएंबहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार आदरणीय
हटाएंमर्मस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंजी बहुत-बहुत आभार आदरणीया
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 21 नवम्बर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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