बुधवार, 13 मार्च 2019

बेटी कल विदा होंगी

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बेटी 
कल विदा होगी 

आज जश्न का माहौल हैं 
और ठुमक-ठुमककर नाँच रहा हैं 
बंदरवाला नाँच
हरकोई 

हर कोई 
इस बात से अनभिज्ञ हैं 
कल विदा होंगी 
बेटी 
ऐसे शहर को 
जिसे पर्यटक के तरह भी नही घुमा हैं 
उसने 

कि कैसे बंद करके रख ली हैं आँसू 
अपने पर्श में 
कोई खंगालना भी नही चाहता 
कि उसमे कितना दर्द हैं 
बेगाने शहर को रुखसत होने से पहले 
सिसकते हुए 

मैंने देखा था उसे 
खिड़की से बाहर तांकते हुए 
शून्य में 

आखिर उसे शून्य से ही शुरुआत करनी होंगी 
रिश्ते-नाते 
घर-परिवार 
यहाँतक कि जिन्दगी भी 

बेटी 
कल विदा होंगी
और हँसनेवाले भी रोयेंगे 
बेवजह 

जबकि वजह तो 
नई बहुरिया को तलाशनी होंगी.

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत गहराई समेटे मर्मस्पर्शी रचना।

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  2. बहुत ही मार्मिक एवं सार्थक रचना...
    मैंने देखा था उसे
    खिड़की से बाहर तांकते हुए
    शून्य में
    आखिर उसे शून्य से ही शुरुआत करनी होंगी
    सटीक... वाह!!!

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  3. कैसे बंद करके रख ली हैं आँसू
    अपने पर्श में
    बहुत सुंदर और मार्मिक

    जवाब देंहटाएं
  4. आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २३५० वीं बुलेटिन ... तो पढ़ना न भूलें ...

    तेरा, तेरह, अंधविश्वास और ब्लॉग-बुलेटिन " , में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. "ब्लॉग-बुलेटिन " में इस रचना को संकलित करने के लिए आभार......सादर

      हटाएं
  5. काहे को ब्याही बिदेस, रे लखि बाबुल मोरे!
    एक शाश्वत प्रश्न और उस से जुड़ी एक शाश्वत समस्या !
    बहुत सुन्दर !

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 21 नवम्बर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

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