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शनिवार, 13 अप्रैल 2019

मुझे नही मरना था

मुझे नही मरना था 
घुट-घुटकर 

मुझे जीना था तेरे प्यार में भी 
जी खोलकर 

मगर 
तूने आहिस्ता-आहिस्ता खंजर भोका 
मेरे उसी हृदय में 
जिसमे प्रेम के पुष्प खिल चुके थे 
सिर्फ और सिर्फ तुम्हें 
महक सुंघाने के लिए 

मैं गवार था 
मगर उतना भी नही कि 
नजरों से गिराकर अपने 
मेरा जीना दुश्वार किए 
( समझ न सकू )

फिरभी मैं चुप रहा 
जबकि मैं चुप रहनेवालो में से नही हूँ 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

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सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...