मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

हमे मुद्दत हुआ एक-दुसरे को देखे

माना 
हमे मुद्दत हुआ 
एक-दुसरे को देखे 

हमारी शक्लें बदली होंगी 
हमारा हावभाव और व्यवहार 
बहुत तक बदल ही गया है 

क्या मिलने आओगी 
सर पर ओढ़नी डाल
जिन्दगी के चिलचिलाती धुप में 
कभी 

नही मिलने ना सही 
बस हाल-चाल पूछने 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोमवार, 29 अप्रैल 2019

वो प्यार के शुरुआती दिन थे

कभी बादलो पर पैर रखकर घूम आये थे 
पूरा आकाश 
दरअसल, वो प्यार के शुरुआती दिन थे 

कभी कड़वी यादें 
मीठी बेर सी लगी 
वो सबकुछ भूला के बस प्यार में गुम हो जाने के दिन थे 

जिगर पर चोट लगे थे तमाम 
बस दगा अपनों ने नही किया था 
यु कहे तो 
वही सबसे खूबसूरत शक्ल थी जिन्दगी की 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

रविवार, 28 अप्रैल 2019

दर्द भरा सफ़र

वो मेरे बिन अकेली होगी 

मैं उसके बिन अकेला हो गया हूँ न 

हमे चाँद पर जाना था मगर 
इससे पहले कि हम आसमान में चढ़ते 
हमारे नीचे की जमीन 
हमारे अपनों ने खींच ली 

बड़ा दर्द भरा सफ़र
रहा 
बिछड़ने के बाद का 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

बाबा तुम भूल गये क्या !

बाबा तुम भूल गये क्या !
बिटियाँ का देश 

नही भूले होंगे सुबह-शाम पान चबाना 
मूछें ऐठकर अम्मा-भैया पर रौब जमाना 

घर से निकलने से पहले नही भूलते होंगे 
भगवान को फूल चढ़ाना 

फूल भी अड़हुल के तोड़ लाते होंगे 
मुँह अँधेरे 
तड़के में टहलने से लौटते 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

बुधवार, 24 अप्रैल 2019

एक तुम्ही थी

तुमसे दूर होने के बाद 
सदा 
ये एहसास रहा 
एक तुम्ही थी जो मुझे अच्छे से समझती थी 

जानती थी हर वो बातें 
जो हरकिसीसे छिपाए रखा था मैंने 

फिर कब मिलना नसीब होगा 
यह सवाल 
मेरे दिलोदिमाग से टकराता रहता है 
दो दीवारों के बीच फेंके गये गेंद की तरह 

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोमवार, 22 अप्रैल 2019

हमे तो अबभी वो गुजरा जमाना याद आता है

तुम्हें जान कहते थे हम अपनी

मगर तुमने बेजान मुझे इस कदर किया कि
तुम्हारी नजरों में प्यार का आशियाँ बनाकर 
भी 
बेघर हूँ 

सारा संसार अपनापन दिखाता था 
जब पहले-पहल हम मिले थे 

गीत नुसरत फतेह अली खान का 
और चित्र राजा रवि वर्मा का 
सुना 
देखा 
सराहा करते थे 

अब बात और है 
गुलाम अली के मखमली आवाज में गुनगुनाये तो 
"हमे तो अबभी वो गुजरा जमाना याद आता है 
तुम्हें भी क्या कभी कोई दीवाना याद आता है....."

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

रविवार, 21 अप्रैल 2019

आदमी अकेले जीना नही चाहता

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आदमी अकेले आता है 
और अकेले जाता है 

लेकिन अकेले जीना नही चाहता 
ना जाने क्यों !

वह मकड़ी का जाल बुनता है रिश्तों का 
और खुद ही फँसता जाता है 

उस जाल से वह जितना निकलने की कोशिश करता है 
उतना ही उलझता जाता है 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

तेरी-मेरी कहानी

तेरी-मेरी कहानी 
गहन चुप्पी में दफन होती जा रही है 

सच और झूठ का बहुत ज्यादा था पहले फ़ासला
अब सिकुड़कर एक हुआ जा रहा है 

किससे कहे 
किससे छुपा ले 
आपबीती 

वो आपबीती जो बीतकर भी 
नही बीती है आजतक 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

मंगलवार, 16 अप्रैल 2019

हम याद आयेंगे

हम याद आयेंगे 
जब यादें भी धुँआ की तरह उड़ती नजर आयेंगी

तुम्हें कोई फर्क नही पड़ता 
कि कैसे जी लिया 
( जंगल सा सघन जीवन )
और कैसे जीता हूँ 
तुम्हारे बगैर 

होंठो पर शिकायत रही हमेशा से 
बस हृदय खामोश रहा 
कि वो कभीभी लौट सकती है 
मौक़ा पाते 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शनिवार, 13 अप्रैल 2019

धर्म, ईश्वर और धर्मउपदेशक

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धर्म 

धर्म दो धारी तलवार है !

अन्धानुसरण भी बुरा है 
और उपेक्षित मन से इसे देखना भी बुरा है 

किन्तु गला तो दोनों ही सुरत में कटना है 


ईश्वर

कोई मुझसे एकदिन पूछ बैठा 
तुम नास्तिक हो कि आस्तिक !
..मन्दिर तो तुम जाते हो लेकिन पूजा-पाठ नही करते क्यों !

मैंने कई तर्क दिए यथा मुझे दूसरे के आस्था की परवाह है इसलिए मन्दिर जाता हूँ..
लेकिन मुझे ईश्वर पर उतना विश्वास नही 
जितना होना चाहिए.. 

दरअसल, आजतक मैंने किसीको नही सुना
यह कहते हुए कि
ईश्वर है !

यह कहते हुए जरुर सुना है कि
ईश्वर है मगर नजर नही आता हरकिसीको ! 


धर्मउपदेशक

धर्मउपदेशक धर्म की व्याख्या मनमानी करते है 
और ईश्वर की प्रशंसा करते नही थकते 

लेकिन उनको मेरा सुझाव है कि
धर्म को कर्म से मिलाये 
और धर्म को धर्म ही बनाये रखने की कोशिश करे 
न कि व्यवसाय !

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

मुझे नही मरना था

मुझे नही मरना था 
घुट-घुटकर 

मुझे जीना था तेरे प्यार में भी 
जी खोलकर 

मगर 
तूने आहिस्ता-आहिस्ता खंजर भोका 
मेरे उसी हृदय में 
जिसमे प्रेम के पुष्प खिल चुके थे 
सिर्फ और सिर्फ तुम्हें 
महक सुंघाने के लिए 

मैं गवार था 
मगर उतना भी नही कि 
नजरों से गिराकर अपने 
मेरा जीना दुश्वार किए 
( समझ न सकू )

फिरभी मैं चुप रहा 
जबकि मैं चुप रहनेवालो में से नही हूँ 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

गुरुवार, 11 अप्रैल 2019

जीने दो मुझे

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जीने दो मुझे 
बड़ी मुश्किल से मैं जीता हूँ 

खाने को भोजन नहीं मिलता 
पूरे दिन धुप-बतास में भटकता -फिरता हूँ 

आसमान का छत 
माना कि बहुत ख़ूबसूरत लगता है 
गर्मीवाली रातों में 
लेकिन सर्दी और बरसाती रातें 
तन , मन को काट, बाँट देती है 
खुली हवा में 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

बुधवार, 10 अप्रैल 2019

जिसे सबकुछ दिया

जिसे सबकुछ दिया 
उसे कितना पाया तुमने 
बोलो 
बोलो न 
कितना !

जिसे तुम नही मिले 
कतरा भर 
उसे क्या मिला 
भला तुमसे.. 

अब कहते हो 
मुझसे प्यार नही होता 
यार जबसे उसे खोया 

तो क्यों ना 
आज तुम मुझे खो दो 

आज से 
मैं भी कहूँगा 
मुझसे प्यार नही होगा अब किसीसे 
तुम्हारे बाद 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

मंगलवार, 9 अप्रैल 2019

मुझे तेरी चाहत की कसम

मुझे तेरी चाहत की कसम 
जबतक जिऊंगा 
तुम्हारे इश्क़ में जिऊंगा 

मुझे किसकी परवाह किसकी फ़िक्र 
जबतक ना मौत आये 
तुम्हे अपने सीने से लगाने के लिए 
तकदीर से लडूंगा 

मानांकि 
मेरा कोई हक नही बनता तुमपर 
पर तुम्हे छोड़ दू 
ये सोचकर 
कि मेरे गैर तुम्हारे अपने तुम्हारा ख्याल रखेंगे 
ऐसी बातों पर मुझे विश्वास नही तनिक 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोमवार, 8 अप्रैल 2019

रोकर ही सुकून आता हो जैसे

वो मुझे रुलायेगी 
मैं उसे 

रोकर ही सुकून आता हो जैसे 

रिश्ते बनते हैं 
रिश्ते बिगड़ते है 
पर हरेक रिश्ते की बुनियाद 
जस की तस होती है 

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शनिवार, 6 अप्रैल 2019

इन कजरारी आँखों ने - 2

बड़े ही संगीन जुर्म को अंजाम दिया 
तुम्हारी इन कजरारी आँखों ने 

पहले तो नेह का समन्दर दिखाए 
जिसमे डुबकी अनायास मैं भी नही लगाना चाहता था 
मगर तुमने तो मजबूर ही कर दिया 

मेरा जीवन सार्थक न लगा 
मुझे ही 
जब उसी समन्दर में रक्त दिखे उनके 
जो फँसकर मर चुके थे 
मुझसे पहले कई

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

इन कजरारी आँखों ने - 1

बड़े ही संगीन जुर्म को अंजाम दिया 
तुम्हारी इन कजरारी आँखों ने 

पहले तो नेह के समन्दर छलकते थे इनसे 
पर अब नफरत के ज्वार उठते हैं इनमे 
मुझे दीखते

मुझे दीखते 
ये  तुम्हारी कजरारी आँखें 
जंगल में लगी आग की तरह 
फैलाती है  
बेचैनी 
मुझमें 

मैं कहाँ चला जाऊ 
कि इनसे सामना ना हो कभी 
यही सोचता रहता हूँ ..

समझ से परे है यारों को भी समझा पाना 
कि डाकूओं की टोली आती हो जैसे 
दिन-दहाड़े 
मुझे लूटने 
हाँ, तुम्हारी ही ये कजरारी आँखें  !

जबकि मेरे पास कुछ भी नही बचा 
फिरभी 

-रवीन्द्र भारद्वाज

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

उसे भूल जाओ

बुरे सपने की तरह उसे भूल जाओ 

हर वो चीज भूल जाओ 
जो तुम्हे सताती है बेहद 

और वो वादें भी 
और वो कसमें भी 
जो उसने खायी थी 
तुम्हें खुश रखने के लिए 

अब वो नही लौटेगी 
जान लो तुम ये 
जी करे तो 
गाँठ बाध लो 
कि वो नही आयेगी अब कभीभी लौटकर 

चित्र और कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

गुरुवार, 4 अप्रैल 2019

मेरे जीवन के प्रभात तुम !

मेरे जीवन के प्रभात तुम !

सुबह जो आती है आशा की बरसात तुम !

तुमने मुझे अपनेपन के बाहों में जबसे भरा 
मैं गदगद हो 
सबसे बोलता-बतियाता फिरता हूँ.. 

कुछ ना कहा तुमने 
कुछ ना कहा मैंने 
फिरभी हम घुलने-मिलने लगे है 
प्रेम के अनदेखे, अनोखे रंगो में 

चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज


बुधवार, 3 अप्रैल 2019

जरूरी था

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जरूरी था के हम तुम कुछ बात कर लेते 

राज जो दिल में दबा रखा था हमने 
जरूरी था उसका खुलना.. 

आरज़ू नही बचें
ना कोई ख्वाहिश रही 
जबसे तुम फिसल गये 
मेरे आस-पास से 
काई पर पड़ते ही पैर की तरह 

बेबस है 
लाचार हो गई हैं जिन्दगी 
किसी एक के ना मिलने के वजह से 
नाहक ही 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 


मंगलवार, 2 अप्रैल 2019

औरत ना होती तो

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औरत ना होती तो 
प्यार ना उपजा होता मर्द के अंदर 

नदियाँ ना होती तो 
सागर रेगिस्तान की तरह तपता रहता 

ह्दय में पीड़ा का मंथन ना होता तो 
कोई क्यों सृजता कविता !

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

सोमवार, 1 अप्रैल 2019

गेंहू की फ़सल पक गई

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गेंहू की फ़सल पक गई

धूप भी गुस्से में रहने लगा है

नदियों का गला सूखता जा रहा है

बच्चे, बुढ्ढे अपना शर्ट, कुर्ता
उतार रखने लगें है
अलगनी पर 

स्कूल की छुट्टियाँ कब होंगी..
यही बात 
कक्षा दर कक्षा घुमती हुई 
भटक जा रही है

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

चित्र - गूगल से साभार 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...