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मंगलवार, 9 अक्तूबर 2018

ज़िंदा हू



तेरे दम पर ज़िंदा हू अबतक

अबतक मेरी सासों में
तेरी ही खुशबू है..
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज




















सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...