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बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

धुधला-धुधला सा नजर आता हैं

पर्वत के पीछे 
तेरी यादें सोती हैं 

नदी के नीचे 
बहुत गहरें में 
तेरी यादें 
बहती हैं 

मेरे संग 

तेरी यादें 
मेरी नजरों में 
इस कदर समायी हैं कि
धुंधला-धुंधला सा नजर आता हैं 
मेरा समग्र जीवन  

तुम्हारे बगैर 

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...