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शनिवार, 29 दिसंबर 2018

कभी यहाँ बरसते हो, कभी वहाँ


Art by Ravindra Bhardvaj
सावन 
बादर 
नैना 

रूप 
धुप 
चैना 

कभी यहाँ बरसते हो 
कभी वहाँ

जहाँ 
प्यासा है 
वहाँ क्यू नही 

एक उत्तर.. 
प्रश्न कई
ऊठ रहे है पानी के बुलबुले सा 
मन में 

अन्तस् में 
पीड़ा है 
घना 

पीड़ा की बीड़ा
ऊठाये 
कबतक कौन ?

वो भी मौन रहकर 
- रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...