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बुधवार, 26 दिसंबर 2018

नामुमकिन था

Art by Ravindra Bhardvaj
ट्रेन का रुकना 
नामुमकिन था

नामुमकिन था
वैसे ही
तुम्हें भी रोक पाना
- रवीन्द्र भारद्वाज


सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...