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रविवार, 9 दिसंबर 2018

रुक जाओ ना

मैंने तो ये सोचा ही नही था 
तुम आई हो इसबार भी चली जाओगी 

होठो पर हँसी रखकर मेरे 
जेहन में लिखकर अल्फाज़ प्यार के 
कल चली जाओगी न 

ना जाना 
मुझे छोड़कर तन्हा 
तन्हा सफर नही कटता
यादें कटती है 

होठो पर 
होठ धर दो अपने 
बाहों में सिमट जाओ 
यू कि पूरी दुनिया लगु मैं तेरी 

तू मुझपे इतना क्यू बिफरती है 
मैं क्या कोई अजनबी हू 
नही न 
तब फिर 
रुक जाओ ना 
इस एक जनम के लिए 

प्लीज..
अगले जनम का मैं नही जानता.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...