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रविवार, 21 अक्तूबर 2018

पराया ही समझती हो !


मुझे 
तुमसे नही लड़ना 

उलझना भी नही 

मुझे 
तुमसे कुछ नही कहना 

मुझे 
तुम्हारा एकभी बात नही सुनना 

आखिर 
तुम पराया ही समझती हो मुझे !
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...