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सोमवार, 24 दिसंबर 2018

कम-स-कम

Art by Ravindra Bhardvaj
साथी ! 
मानांकि 
हम मिल नही सकते 

एक-दुसरे के 
लबो को 
चूम नही सकते 

पर 
गिले-शिकवे 
मिटा सकते है 
बात करके 

ऐसी चुप्पी क्यू साधना 
तिल-तिल के 
लील जाये
जो 
तुमको 
हमको,
कम-स-कम 
हाय..
गुडमार्निंग 
कैसे हो..
पूछ लिया करो..
यारा !
- रवीन्द्र भारद्वाज 

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...