ओ परी !
बड़ी प्यारी लग रही हो आज !
आज फिजाओं में मस्ती हैं
और सागर पर फेनिल लहरे
मेरे हाथ में काश ! तुम्हारा हाथ होता !
दौड़ते-दौड़ते लगा देते डूबकी
इश्क़ के खारे पानी में
और धूप में लेटकर
कविता गुलजार की
और अख्तर साहब की
सुनाता
तुम्हें
यह एहसास तुमको हो जाता
कही न कही
मैं भी शायर बन चुका हूँ
तुम्हारे इश्क़ में पड़कर
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
गुलज़ार या जावेद अख्तर की क्यों, कोई अपनी नज़्म सुनाओ ! उसका असर ज़्यादा गहरा होगा.
जवाब देंहटाएंजी जरुर ....
हटाएंअत्यंत आभार आदरणीय
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंजी अत्यंत आभार
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