तुम्हारे कदमों के निशान अब नही
यहाँ
यही तुम चले थे
थिरकें थे
लगभग नाँचे भी थे
अब यहाँ बहुत गर्मी पड़ती है
दिल में बेचैनी सी रहती है
शाम फ़ीका-फ़ीका लगता है
तुम्हारे बिना
रातें
बंजर हो गई है
बहुत हद तक मुमकिन है
तुम मुझे भूल गई होंगी
पर भूलने की क्या वजह रही होंगी
सोचता रहता हू..
मैंने तो ये भी सोच लिया था
मैं तुम्हारे लायक नही..
क्या यह सच है जी !
तुम मुझे धक्का दे दीए न
स्वर्ग से
नर्क में.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें