हम शिकवा करे
कि शिकायत करे
है जब तू रूबरू
भूलके सब शिकवे-गिले
क्यों ना हम प्यार करे !
ये भी मुमकिन है
हम जता ना पाये वो प्यार
जो बरसों पहले आग जैसे धधकता था
ये भी मुमकिन है
राख की ढेर में
कोई तो चिंगारी दबी होंगी
जो बुझी नही होंगी अभीभी.
अभीभी
कुछ तो होंगा हमारे दरम्यान
मानाकि
इश्क हमारा मूक हो जिया है
बरसों तक.
रेखाचित्र व कविता -रवीन्द्र भारद्वाज
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