सपने टूटें
शीशे जैसे
कि जुड़ना भी मुश्किल
तुम रूठे
पर्वत जैसे
कि बात करना भी मुश्किल
दूभर लगता हैं
सांस लेना
साँसों में
नाइट्रोज हो जैसे समायी
एकदिन वो भी था
जब हँस-हँसके
तुम बातें किया करती थी
मुझसे
और एकदिन ये भी हैं
कि शक्ल भी नही रास आ रहा तुमको मेरा
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" आज शनिवार 23 मार्च 2019 को साझा की गई है......... मुखरित मौन पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"मुखरित मौन में" इस रचना को जगह देने के लिए आभार ....आदरणीया जी सहृदय
हटाएंअत्यंत आभार आदरणीय "पांच लिंकों का आनंद" में इस रचना को संकलित करने के लिए
जवाब देंहटाएंसादर
वाह बहुत उम्दा रचना ।
जवाब देंहटाएंजी अत्यंत आभार आदरणीया
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय सादर
हटाएंबहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएंजी सह्दय आभार आदरणीया
हटाएं