जोगी जी !
होरी आ गयों
मन भांग खा बौरा गयों
तुम बजाओ ढोलक
मैं बजाऊ झाल
होरी आ गयों ऊधो !
माधो का हैं बस इन्तजार
ब्रज में
अबीर, गुलाल धुपछईयां सा छा गयों
और गोपियाँ
साँवरा रंग छोड़
सब रंग नहा गयी
तुमहूँ नाँचो राधा प्यारी !
मीरा बैरन नाँची
श्याम खेलन अइहें होरी
उगे सूरज हुए
अभी
पहर एक
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
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