दिन और अवधि के हिसाब से
हो जाता हैं अंत बसंत का
प्रत्येक वर्ष
लेकिन सच पूछो तो
बसंत छाया रहता हैं
एक उम्मीद की तरह
वर्षभर
हमारे अंदर
उसकी यादें
उसकी बातें
कहां बिसरा पाता हैं भूले से भी कोई
आखिर
कौन नही करना चाहता
उसकी प्रसंशा करना
और कौन नही चाहता
उसके बासंती रंगों में रँगना
सच पूछो तो
उसका जवाब नही
और जिसका जवाब नही
उसके बारे में
क्या कहना !
हर शब्द कम पड़ जायेगा
आखिर में.
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
सच पूछो तो बसंत छाया रहता है
जवाब देंहटाएंएक उम्मीद की तरह
वर्ष भर हमारे अंदर
बेहतरीन
जी अत्यंत आभार आदरणीया
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबसंत छाया रहता हैं
जवाब देंहटाएंएक उम्मीद की तरह
वर्षभर ......, बहुत खूब..., उम्मीद और वसन्त की तुलना बेहद सुन्दर लगी ।
जी हृदयतल से आभार आदरणीया
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंहृदयतल से आभार आदरणीय
हटाएं"पांच लिंकों का आनंद" में इस रचना को साझा करने के लिए आभार..... जी सादर
जवाब देंहटाएंवाह कुछ अलहदा पर सुंदर संयोजन।
जवाब देंहटाएंजी हृदयतल से आभार आदरणीया
हटाएंबसंत छाया रहता हैं
जवाब देंहटाएंएक उम्मीद की तरह
वर्षभर
हमारे अंदर
वाह!!!
बहुत सुन्दर...
जी हृदयतल से आभार आदरणीया
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