शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

शाम ढले

शाम ढले 
  • एक दिया जलता है 


  • उस दिए को 
    देखकर
  • एक उम्मीद जगती है 


  • उस दिए की लौह की तरह ही
    मेरी प्रीत भी जलती होगी 
  • कहीं पर


    • ~ 🖋️ रवीन्द्र भारद्वाज
     

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