शाम ढलेएक दिया जलता है
उस दिए को
देखकरएक उम्मीद जगती है
उस दिए की लौह की तरह ही
मेरी प्रीत भी जलती होगीकहीं पर
- ~ 🖋️ रवीन्द्र भारद्वाज
प्रेम अनुभूति का विषय है..इसीलिए इसकी अभिव्यक्ति की जरूरत सबको महसूस होती है.. अतः,अपनी मौलिक कविताओं व रेखाचित्रो के माध्यम से, इसे अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा हू मैं यहाँ.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
सोचता हूँ..
सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो बहार होती बेरुत भी सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना ज्यादा मायने नही रखता यार ! यादों का भी साथ बहुत होता...
-
सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो बहार होती बेरुत भी सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना ज्यादा मायने नही रखता यार ! यादों का भी साथ बहुत होता...
-
सघन जंगल की तन्हाई समेटकर अपनी बाहों में जी रहा हूँ कभी उनसे भेंट होंगी और तसल्ली के कुछ वक्त होंगे उनके पास यही सोचकर जी रहा हूँ जी ...
-
बसंत को हरकोई देख रहा हैं बसंत हैं ही ऐसा मन को मोह लेनेवाला पलाश को हरकोई देख रहा हैं पलाश हैं ही ऐसा आत्...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें