नदियाँ अगर बची-खुची हैं तो
शवदाह के लिए ..
नदियों के गर्भ में
जो मछलियाँ, केकड़े, झिंगें ..
हैं
वो हमारे पेट में आने से पहले तक ही
सुरक्षित और आजाद हैं
नदियों से हमारा नाता पुश्तैनी रहा हैं
मन जबभी खिन्न होता था
आकर इसके किनारों पर
(हमारे पूर्वज को )
तात्विक बातों का भेद मिलता था
अब विरले जगहों पर ही
नांवे चलती हैं
और शौकियां ही यात्राएं होने लगी हैं
ज्यादातर
इसपर
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंजी अत्यंत आभार आदरणीया
हटाएंगहरी चिंता का विषय चुना आपने।
जवाब देंहटाएंसार्थक और यथार्थ।
हृदयतल से आभार आदरणीया
हटाएंनदियों की व्यथा , गहन विषय
जवाब देंहटाएंजी हृदयतल से आभार
हटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंविचारणीय तथ्य..सुंदर👌
जवाब देंहटाएंजी हृदयतल से आभार आदरणीया
हटाएंबहुत सुन्दर
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