तिनका जितना
रखना
ग़वारा न समझा
उसने
मुझे
अपनी जिन्दगी में
जानता हूँ
सबका हश्र बुरा होता हैं
प्यार में
मेरा भी हुआ
अब बात पते की लगने लगी हैं
प्यार पर बनी फ़िल्में भी
नायक और नायिका के
बुरे हश्र की गाथा गाती नजर आती हैं
ज्यादातर
असल में
प्यार उतना भी बुरा नहीं
जितना हमने माना हैं
समझा हैं
जाना हैं
लेकिन उसने ये मानकर बहुत बड़ी गलती की
कि
प्यार हैं बस थोथी कल्पना
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
अच्छी है।
जवाब देंहटाएंआभार.... आदरणीय सादर
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 29/03/2019 की बुलेटिन, " ईश्वर, मनुष्य, जन्म, मृत्यु और मोबाइल लगी हुई सेल्फ़ी स्टिक “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआभार... आदरणीय इस रचना को ब्लॉग बुलेटिन में जगह देने के लिए
हटाएंसादर
व्यथित मत हो कविराज ! तुम कल्पना को साकार करने की सामर्थ्य रखते हो. वो न सही तो कोई और सही !
जवाब देंहटाएंह्दयतल से आभार आदरणीय
हटाएंसादर
प्रेम में अक्सर ऐसा होता है ... अंत हर प्रेम का ऐसा पर कल्पना से बाहर आ के आगे बढ़ जाना ही जीवन ...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ...
....सत्य कहा आपने।
हटाएंह्दयतल से आभार आदरणीय
अच्छी पंक्तियाँ....!!
जवाब देंहटाएंआभार ...जी सादर
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (31-03-2019) को " निष्पक्ष चुनाव के लिए " (चर्चा अंक-3291) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
--अनीता सैनी
'चर्चा मंच' में इस रचना को स्थान देने के लिए आभार आदरणीया
हटाएंसादर
अच्छी सरल अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार आदरणीया
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