एक आँसू की कीमत तुम
क्या जानों !
जब दर्द सम्हालें नही
सम्हलता हैं
तो आ ही जाता हैं
आँसू
बाहर
बाहर
आकर भी
आंसू
अगर दर्द को न समझा
पाये
अपना
अपनों को
तो बेकार ही समझों
हैं अपनों की संवेदना !
कविता
– रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र
– गूगल से साभार
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसह्दय आभार आदरणीया
हटाएंबहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंसह्दय आभार आदरणीया
हटाएंफकत खाक में मिलने को बहा भी तो बहा क्या
जवाब देंहटाएंकिसी की हथेली पर सजता मोती बन तो कोई बात।
सुंदर।
वाह.....
हटाएंअत्यंत आभार आदरणीया
Right .......
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंजी सह्दय आभार आदरणीया
हटाएंसटीक ..सुन्दर... सार्थक रचना ।
जवाब देंहटाएंजी सह्दय आभार आदरणीया
हटाएंआभार जी सादर
जवाब देंहटाएंइस रचना को "पांच लिंको के आनंद" में संकलित करने के लिए
सही कहा
जवाब देंहटाएंजी सह्दय आभार आदरणीया
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