प्रणय मेरा अभिशाप बना
ना जी ही पाता हूँ
ना मर ही पाता हूँ
ठीक से
लाख कोशिशों के बावजूद
मैं इससे मुक्त भी नही हो पाया हूँ
गोधूली बेला में
वह पायल छनकाती
रातरानी की ख़ुशबू उड़ाती
आ ही जाती हैं
मेरे कमरे में
उसकी शीतल स्पर्श के बावजूद
आग धधकती रहती हैं
तन-मन में
खाबो-ख्यालो से ढका मेरा जीवन
बस उसकी ही गोद में अंतिम सांस लेना चाहता हैं
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
सुंदर रचना। आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
बहुत-बहुत आभार आदरणीय।
हटाएंआपका भी सुस्वागतम
वाह बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत-बहुत आभार..... आदरणीया
हटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार आदरणीया
हटाएंबेहद सुंदर रचना ,सच प्रेम कभी कभी अभिशाप बन ही जाता हैं
जवाब देंहटाएंसच कहा आदरणीया
हटाएं.....बहुत-बहुत आभार
वाह बहुत खूब रवींद्र जी उम्दा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंजी बहुत-बहुत आभार...... आदरणीया
हटाएं