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घर सुनसान हो जाता हैं
जब बच्चें अपने पढने चले जाते हैं
उनके जाते ही
घर के कोने-अतरे में जाकर छिप जाती हैं
चंचलता
मेरी तरह वो भी उनके लौटने का इन्तजार करते हैं..
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
प्रेम अनुभूति का विषय है..इसीलिए इसकी अभिव्यक्ति की जरूरत सबको महसूस होती है.. अतः,अपनी मौलिक कविताओं व रेखाचित्रो के माध्यम से, इसे अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा हू मैं यहाँ.
सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो बहार होती बेरुत भी सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना ज्यादा मायने नही रखता यार ! यादों का भी साथ बहुत होता...