प्रेम अनुभूति का विषय है..इसीलिए इसकी अभिव्यक्ति की जरूरत सबको महसूस होती है.. अतः,अपनी मौलिक कविताओं व रेखाचित्रो के माध्यम से, इसे अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहा हू मैं यहाँ.
मंगलवार, 30 जुलाई 2019
गुरुवार, 25 जुलाई 2019
नही भागना मुझे !
चलो भाग चलते है कही..
बहुत घुट-घुटकर जिया हमने
बहुत खयाल रख लिया
अपनो का भी
लोगो का भी
लोग कह रहे है -
जमाना बदल रहा है
विजातीय शादी-विवाह शहरों
और गाँवो में भी हो रहा है
बड़े ही धूमधाम से
लेकिन नही
बस कहने में हो रहा है ऐसा
हाँ, बस तुम ना बदलना
या मुझे छोड़ परदेस में अकेला
ना भाग जाना
ऐसा होता है बहुत ज्यादा
परदेस में
लेकिन बाबू की याद आयेगी
अम्मा मना लेगी हिया को
लेकिन भईया का गुस्सा
नही बाबा नही भागना मुझे !
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
बुधवार, 24 जुलाई 2019
दिल खोलकर हँसता हूँ कि
दिल खोलकर हँसता हूँ
कि सब गम चिड़ियों के झुंड की तरह उड़ जाये
लेकिन एक-दो ऐसी भी चिड़िया है
जो जँगले पे
मेरे दिल के
घर बनाकर रहने लगी है
उन्हें उड़ाना भी नही बनता मुझसे
ना ही दाना खिलाना
सुबह-शाम वो इतना खुश होकर चहकती है कि
मेरी नींद, मेरा चैन दरकने लगता है
खण्डहर वाले मकान में आये झंझावात से गिरने ही वाली दीवार की तरह
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
सोमवार, 22 जुलाई 2019
अहसास
अहसास को जब बुनना शुरू किया
तब नही मालूम था
कि एकदिन यह प्यार का चादर हो जायेगा
जिसे ओढ़कर सारी उम्र काटनी होगी
और उसे
इसका अहसास तक नही होगा शायद
चादर
चाहे जितनी फटी-पुरानी होगी
अपनापन गाढ़ा होता जायेगा
उससे
ये न सोचा था
लेकिन ठीक ऐसा ही हुआ
उस चादर को ओढ़ते-ओढ़ते
रोए बढ़ते गये
शरीर पर
अपनेपन का
और अब अगर उसे उतार भी दे तो भी
वो अहसास नही जायेगा
जिसे ओढ़कर
जिया
आधा से ज्यादा उम्र
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
बुधवार, 17 जुलाई 2019
एक रात बरसात की
एक रात थी
बरसात की
चन्द लम्हों का सफर था वो
हमने तय किया उस सफर को
सदियों से लम्बा
हथेलियां एक-दूसरे से गले मिली थी
छतरी से फिसलके बूंदे
बौछारों से भिंगो रही थी
हमें
सिहरन सी दौड़ती तन-मन में
जब बूंदे बहती
नहर सी
हमारे शरीर के इस छोर से उस छोर
और
और करीब होते जाते थे तब हम।
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
रविवार, 14 जुलाई 2019
गुरुवार, 11 जुलाई 2019
मंगलवार, 9 जुलाई 2019
गुरुवार, 4 जुलाई 2019
सोमवार, 1 जुलाई 2019
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सोचता हूँ..
सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो बहार होती बेरुत भी सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना ज्यादा मायने नही रखता यार ! यादों का भी साथ बहुत होता...
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कभी शिकायत थी तुमसे ऐ जिंदगी ! अब नही है... जीने का जुनून था कुछ कर गुजरना खून में था तकलीफ भी कम तकलीफ देती थी तब। अब अपने पराये को ताक ...
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मुझे बादलों के उस पार जाना है तुम चलोगी क्या ! साथ मेरे मुझे वहाँ आशियाँ बनाना है हाथ बटाओगी क्या ! मेरा वहाँ.. अगर चलती तो साथ मिलकर ब...