बुधवार, 24 जुलाई 2019

दिल खोलकर हँसता हूँ कि

दिल खोलकर हँसता हूँ 
कि सब गम चिड़ियों के झुंड की तरह उड़ जाये 

लेकिन एक-दो ऐसी भी चिड़िया है 
जो जँगले पे 
मेरे दिल के 
घर बनाकर रहने लगी है 

उन्हें उड़ाना भी नही बनता मुझसे
ना ही दाना खिलाना 

सुबह-शाम वो इतना खुश होकर चहकती है कि 
मेरी नींद, मेरा चैन दरकने लगता है 
खण्डहर वाले मकान में आये झंझावात से गिरने ही वाली दीवार की तरह

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार


8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 24 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुन्दर सृजन अनुज
    सादर
    अनुज.. 26जुलाई को कारगिल दिवस है एक रचना आप की कल आनी चाहिये

    जवाब देंहटाएं

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