चलो भाग चलते है कही..
बहुत घुट-घुटकर जिया हमने
बहुत खयाल रख लिया
अपनो का भी
लोगो का भी
लोग कह रहे है -
जमाना बदल रहा है
विजातीय शादी-विवाह शहरों
और गाँवो में भी हो रहा है
बड़े ही धूमधाम से
लेकिन नही
बस कहने में हो रहा है ऐसा
हाँ, बस तुम ना बदलना
या मुझे छोड़ परदेस में अकेला
ना भाग जाना
ऐसा होता है बहुत ज्यादा
परदेस में
लेकिन बाबू की याद आयेगी
अम्मा मना लेगी हिया को
लेकिन भईया का गुस्सा
नही बाबा नही भागना मुझे !
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
बहुत ही सुन्दर रचना अनुज |
जवाब देंहटाएंहर शब्द अंतरमन में उतरता,कुछ सामाजिक कुछ रिश्तों का मार्मिक एहसास |
सादर
सह्दय आभार दी आपका सादर 🙏
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