मंगलवार, 30 जुलाई 2019

जाते वक्त

उसने मुड़कर देखना भी उचित ना समझा 
जाते वक्त 

और ना ही समझाके गया कि 
ये प्यार नही कुछ और है 
पागलपन जैसा 

फिर 
वो जो सर पर से आसमान जैसे गुजरा 
वो क्या था

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

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