शुक्रवार, 2 अगस्त 2019

कोई तो रास्ता होगा

कोई तो रास्ता होगा 
जहाँ हम दिख जाये 
अचानक से
एक-दूसरे को 

और गले मिलकर
मिटा दे 
सारे शिकवे-गिले

शहरो में जब शाम होती है
सुबह समझकर निकलते है घर से लोग 
ऐसे ही तुम भी निकला करो 
घर से बाहर
कि हो कही आमना-सामना
हमारा-तुम्हारा 
-सोचकर

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

1 टिप्पणी:

  1. एक उमीद है बाकि , दिल को समझाने के लिए ये चाह बूरी तो नहीं | सार्थक रचना |

    जवाब देंहटाएं

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...