सोमवार, 22 जुलाई 2019

अहसास

अहसास को जब बुनना शुरू किया 
तब नही मालूम था 
कि एकदिन यह प्यार का चादर हो जायेगा 

जिसे ओढ़कर सारी उम्र काटनी होगी 

और उसे 
इसका अहसास तक नही होगा शायद

चादर 
चाहे जितनी फटी-पुरानी होगी 
अपनापन गाढ़ा होता जायेगा 
उससे 
ये न सोचा था 
लेकिन ठीक ऐसा ही हुआ 

उस चादर को ओढ़ते-ओढ़ते
रोए बढ़ते गये 
शरीर पर 
अपनेपन का 

और अब अगर उसे उतार भी दे तो भी 
वो अहसास नही जायेगा
जिसे ओढ़कर 
जिया 
आधा से ज्यादा उम्र

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार


12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत भावपूर्ण है एहसास की चादर, जो अनुराग के धागों से बनी है। सस्नेह शुभकामनायें। 👌👌👌👌

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  2. वाह !बेहतरीन सृजन अनुज
    हार्दिक शुभकामनाएँ| इस स्नेह से ओत-प्रोत रचना के लिए |
    सादर

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  3. भावों को संजोती एवं मन में पिरोती सुंदर लेखन। बधाई आदरणीय रवीन्द्र जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. जी ह्दयतल से आभार आपका आदरणीया सादर 🙏

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