सोमवार, 1 जुलाई 2019

तुम्हारी यादे

सागर उफनके 
शांत हो जायेगा

घड़े का पानी छलक के 
अशांत हो जायेगा

दबे पाँव आती है 
तुम्हारी यादे 
सन्नाटे से जमी रातों में 
और मोम जैसे पिघलाती है मुझे 

शांत मन अशांत हो जाता है
एक ही जगह पर बैठे-बैठे 
सैकड़ों जगह पर ढूढ़ता-फिरता हू 
तुम्हारे कदमो का निशान

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

2 टिप्‍पणियां:

  1. दबे पाँव आती है
    तुम्हारी यादे
    सन्नाटे से जमी रातों में
    और मोम जैसे पिघलाती है मुझे ... बेहद खूबसूरत रचना

    जवाब देंहटाएं

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...