शनिवार, 21 अगस्त 2021

तेरे मेरे प्रेम की धरातल

तेरे मेरे प्रेम की धरातल
ऊबड़-खाबड़ है बड़ी 

चलना 
इसपर
दुर्गम जान पड़ता है
एक पर्वतारोही की तरह 

सदियों के सफर के बाद भी 
आराम नही मिला है
अभीतक 
दिल को 

चैन और क़रार भी छीन गया है 
मुद्दत पहले ही 
एक तरफ तुम्हारे चलने से
दूसरे तरफ मेरे चलने से।

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

शनिवार, 14 अगस्त 2021

घर, प्रेम और तुम

तुम्हारे प्रेम के बूते 
मेरा घर खड़ा  हुआ है

तुम्हारे संस्कार से 
सजा है 
कमरे मे 
हर चीज
करीने से।

तुम जबतक नही आयी थी 
जंगल की तन्हाई एवं एकांकीपन से भरा था 
यह घर

और आकर अब 
जाने की बात करती हो 
क्यों !
क्या हमसे ज्यादा तुम्हें इस घर से हमदर्दी नही थी 
कभी !

कभी घर छोड़कर जाती थी तो 
फिक्र सताती थी 
तुम्हें 
घर की 
बहोत
और अब...

रेखाचित्र व कविता ~ रवीन्द्र भारद्वाज

गुरुवार, 12 अगस्त 2021

मुझे तुमसे कुछ कहना है..

मुझे तुमसे कुछ कहना है ..

रात के तन्हाई में 
या फिर साँझ के अंगड़ाई लेते समय 

उठते-गिरते लहरों से 
बातें है 
मन व मस्तिष्क में।

कि.. मैंने तुमसे प्रीत किया 
इस कदर 
कि जीने का मकसद ही बदल गया मेरा

और
मेरे प्रीत के बदले में
मुझे क्या मिला !
गम और अवसाद के शिवाय
तुमसे।

अगर तुम इतने बेपरवाह होकर 
जीना चाहते थे तो 
क्यों खड़ा किया तुमने मुझे 
कटघरे में 
...!

~ रवीन्द्र भारद्वाज

रविवार, 8 अगस्त 2021

एक अरसा बाद


तुम आये तो 
लगा 
सावन की पहली बौछार आयी है  !

बहकी-बहकी फ़िजा 
संग अपने 
लायी हो 

एक अरसा बाद 
मैं हँसा था ..

अरसा बाद 
तुम्हें मेरे पास आता हुआ 
देखकर..

~ रवीन्द्र भारद्वाज

गुरुवार, 5 अगस्त 2021

न जाना दूर कभी

अब जो आये हो 
इतने करीब
न जाना दूर
कभी।

कभी
हमसे अलग होने का ख्याल
न लाना 
दिल में।

क्योंकि
इश्क़ होने में 
मुद्दत लगता है 
और बिछड़ने में 
घड़ी भर का समय।

~ रवीन्द्र भारद्वाज

सोमवार, 2 अगस्त 2021

हमारा प्यार

समन्दर उतना गहरा नही 
जितना गहरा हमारा प्यार है !

सात पुस्त की दुश्मनी भले ही आज बरकरार है
मगर गहरे पाताल से भी गहरा हमारा प्यार है !

~ रवीन्द्र भारद्वाज

रविवार, 28 फ़रवरी 2021

भोर की ट्रेन से

वो चली गयी 
भोर की ट्रेन से 
हँसते-हँसते

इसबार
उसे थोड़ा सा ही रोना आया 

वरना 
पहले
रोती थी वो 
सुबक-सुबक के 

इसबार गम नही 
खुशी लेकर गयी है
मुम्बई।

रेखाचित्र व कविता ~ रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...