मुझे तुमसे कुछ कहना है ..
रात के तन्हाई में
या फिर साँझ के अंगड़ाई लेते समय
उठते-गिरते लहरों से
बातें है
मन व मस्तिष्क में।
कि.. मैंने तुमसे प्रीत किया
इस कदर
कि जीने का मकसद ही बदल गया मेरा
और
मेरे प्रीत के बदले में
मुझे क्या मिला !
गम और अवसाद के शिवाय
तुमसे।
अगर तुम इतने बेपरवाह होकर
जीना चाहते थे तो
क्यों खड़ा किया तुमने मुझे
कटघरे में
...!
~ रवीन्द्र भारद्वाज
बहुत ही जायज शिकवा प्रिय रविन्द्र जी।!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत दर्द ठहरा है इस उद्बोधन में!
जी सह्दय आभार आपका ...🙏
हटाएंआपकी टिप्पणियां पढ़कर मैं बहुत आनन्दित होता हूँ और बढ़िया लिखने की प्रेरणा लेकर...
मै आपकी टिप्पणियों के लिए प्रतीक्षारत रहता है...
हाँ, मैं जवाब व आभार नही व्यक्त नही कर पाता हूँ सर्वदा...इसका मुझे अत्यंत खेद रहता है...