तुम्हारे प्रेम के बूते
मेरा घर खड़ा हुआ है
तुम्हारे संस्कार से
सजा है
कमरे मे
हर चीज
करीने से।
तुम जबतक नही आयी थी
जंगल की तन्हाई एवं एकांकीपन से भरा था
यह घर
और आकर अब
जाने की बात करती हो
क्यों !
क्या हमसे ज्यादा तुम्हें इस घर से हमदर्दी नही थी
कभी !
कभी घर छोड़कर जाती थी तो
फिक्र सताती थी
तुम्हें
घर की
बहोत
और अब...
रेखाचित्र व कविता ~ रवीन्द्र भारद्वाज
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