मुझे तुमसे कुछ कहना है ..
रात के तन्हाई में
या फिर साँझ के अंगड़ाई लेते समय
उठते-गिरते लहरों से
बातें है
मन व मस्तिष्क में।
कि.. मैंने तुमसे प्रीत किया
इस कदर
कि जीने का मकसद ही बदल गया मेरा
और
मेरे प्रीत के बदले में
मुझे क्या मिला !
गम और अवसाद के शिवाय
तुमसे।
अगर तुम इतने बेपरवाह होकर
जीना चाहते थे तो
क्यों खड़ा किया तुमने मुझे
कटघरे में
...!
~ रवीन्द्र भारद्वाज