मंगलवार, 28 मई 2019

परिंदे और आदमी

परिंदे 
उड़ते-उड़ते 
किसी ऐसे जगह पर जा पहुचेंगे
जहाँ थोड़ा-बहुत तो जरूर सुकून हो 

लेकिन
हम 
एकांत की खोज में 
भीड़ में शामिल हो जायेंगे

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार


रविवार, 26 मई 2019

फिरभी

किसी उम्मीद की उंगली पकड़कर चलता हूँ 
तेरे साथ-साथ 

जबकि साथ मुकम्मल भी नही है
फिरभी 

फिरभी 
तेरी हरेक बेपरवाही का परवाह करता हूँ 

यार ! तू तो भूल गया होगा मुझसे पहले
मेरे प्यार को 
लेकिन आजभी मैं तुम्हें प्यार से ही, प्यार करता हूँ।

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

गुरुवार, 23 मई 2019

पापा ! आज घर जल्दी आना !

पापा ! आज घर जल्दी आना 

तुमने कहा था न हम घूमने चलेंगे

तुमने ये भी कहा था हम आइसक्रीम खायेंगे
और ख़रीदोंगो वो रेलगाड़ी 
जो गोल-गोल घूमती है
अरे वही जो पेंसिल सेल से चलती है 

पापा ! आज घर जल्दी आना 

मैं क्या पहन के चलूंगा तुमने पूछा था न 
मम्मी ने धो दिया है वो जीन्स टी शर्ट 
और तुम्हारे आने से पहले ही वो सुख जायेगा

पापा ! प्लीज प्लीज आज घर जल्दी आना।

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

मंगलवार, 21 मई 2019

बिन बाबा के

बिन बाबा के 
बेटी 
ना ब्याही जाये 

बाबा के शिवाय 
कोई बेटी को विदा ना कर पाये 

बिन बाबा से गले मिले
बेटी से चौखट पार ना हो पाये 

बाबा की कांपती हथेलियां 
आशीष देंने के लिए उसके सर पर रुके

रुकते कदम बेटी का 
फिरसे आगे बढ़ते जाये 

बाबा का आशीर्वाद 
जनम-जनम तक फले-फुलाए
बेटी के घर

बिन बाबा के
बेटी
ब्याही ना जाये।

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

तुमको भूल ना पायेंगे

तुमको भूल ना पायेंगे

भूलकर तुम्हें 
कहाँ जायेंगे

मेरी हरेक नादानी पर हँसना जी खोलकर
मेरी हरेक बेपरवाही का परवाह करना चुप रहकर
नही भुला पायेंगे

तुमको भूल ना पायेंगे

क्योंकि किस्मत को आजमाने किस-किस दर जायेंगे
जहाँ भी जायेंगे मुझे ही पायेंगे हुजूर 
- मेरी बेरुखी सी बातों को सुनकर कहती थी तुम 
इसलिए
हम कोई और दरवाजा नही खटखटायेंगे

तुमको भूल ना पायेंगे 

और हाँ, भूलकर तुम्हें
कहाँ जायेंगे।

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

गुरुवार, 16 मई 2019

बच्चे भी काम पर जाते है

बच्चे भी काम पर जाते है
जिनके माँ-बाप नही होते 
अनाथ होते है खासकर वो 

वो भी बच्चा जाता है काम पर 
जिसका बाप दिनभर दारू-भाग-चरस 
गांजा पीता है
या जिसकी माँ बस पैसे की भूखी होती है 

मत पूछिए कौन सा काम मिलता है इनको 
जहाँ हम आराम से चाय-समोसे-छोले मज़े से खाते है 
जरा गौर फरमाईयेगा तो 
नाबालिग बच्चों को ही परोसते हुए ज्यादातर पाईयेगा।

अपने घर के पीछे कूड़े-कचरेवाले जगह में 
चिलचिलाती धूप में 
ऐसे ही बच्चे दिखेंगे पॉलीथिन, तेल आदि के डिब्बे और बॉसी रोटियां भी उठाते-खाते हुए

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

रविवार, 12 मई 2019

‘माँ’ पर कविता लिखना

‘माँ’ पर कविता लिखना
मेरे लिए
उतना ही दुरूह है
जितना पानी पर चलना..

क्योंकि
मैंने माँ की चिन्ताओ की
कभी परवाह नही की..

वह किस सोच में बैठी रहती है
सुबह-शाम
कभी जानने की कोशिश नही की..

माँ का जन्म देना
मुझे
सपना सजोंनाँ कि
बड़ा होकर
मेरे और बाबा ख्याल रखेंगा
बहुत

कभी सच होता नही लगने दिया
मैंने उन्हें..

– रवीन्द्र भारद्वाज

सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...