बच्चे भी काम पर जाते है
जिनके माँ-बाप नही होते
अनाथ होते है खासकर वो
वो भी बच्चा जाता है काम पर
जिसका बाप दिनभर दारू-भाग-चरस
गांजा पीता है
या जिसकी माँ बस पैसे की भूखी होती है
मत पूछिए कौन सा काम मिलता है इनको
जहाँ हम आराम से चाय-समोसे-छोले मज़े से खाते है
जरा गौर फरमाईयेगा तो
नाबालिग बच्चों को ही परोसते हुए ज्यादातर पाईयेगा।
अपने घर के पीछे कूड़े-कचरेवाले जगह में
चिलचिलाती धूप में
ऐसे ही बच्चे दिखेंगे पॉलीथिन, तेल आदि के डिब्बे और बॉसी रोटियां भी उठाते-खाते हुए
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
यथार्थ दर्शन, मर्मस्पर्शी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहद हृदयस्पर्शी
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 16/05/2019 की बुलेटिन, " मुफ़्त का धनिया - काबिल इंसान - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी सृजन ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर। खासकर कर लीजिये।
जवाब देंहटाएंवाह!! बहुत खूब । मन को भीतर तक छू गई ।
जवाब देंहटाएंविसंगतियों को उकेरती रचना
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