रविवार, 12 मई 2019

‘माँ’ पर कविता लिखना

‘माँ’ पर कविता लिखना
मेरे लिए
उतना ही दुरूह है
जितना पानी पर चलना..

क्योंकि
मैंने माँ की चिन्ताओ की
कभी परवाह नही की..

वह किस सोच में बैठी रहती है
सुबह-शाम
कभी जानने की कोशिश नही की..

माँ का जन्म देना
मुझे
सपना सजोंनाँ कि
बड़ा होकर
मेरे और बाबा ख्याल रखेंगा
बहुत

कभी सच होता नही लगने दिया
मैंने उन्हें..

– रवीन्द्र भारद्वाज

6 टिप्‍पणियां:

  1. मां के विचारों का सम्मान करना ही सच्चा मातृदिवस है

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  3. माँ के विचारों का सम्मान करना हर पुत्र का धर्म है.
    बेहतरीन आत्मकथ्य.
    कवि हृदय संवेदनशील होता है वह औरों की भावनाओं को समझकर ही उसे पन्नों पर उतारता है.शायद इसी वजह से आप ऐसा महसूस कर रहे हैं.

    मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

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  4. रविन्द्र जी, यह सरेआम कबूल करना कि मैं ने माँ की परवाह नहीं की बहुत बड़ी बात हैं। असल मे जो परवाह नहीं करते है वे लोग ढिंढोरा पीटते हैं कि उन्हें अपने माँ की परवाह हैं।
    लेकिन जो परवाह करते हैं उन्हें लगता हैं कि उन्होंने और ज्यादा परवाह करनी चाहिए थी।

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  5. अपनी कमियों को स्वयं स्वीकार करना और सबके सामने स्वीकार करना अपनेआप में बहुत बड़ी बात है।कहते हैं महान ज्ञानी ही मानता है कि मैं अज्ञानी हूँ सिर्फ अपनी कमियों को देखना और अपने को अज्ञानी मानना ही हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और बेहतर बनने की पहली कोशिश.... आप एक अच्छे पुत्र हैं व और बेहतर बनना चाहते हैं ...
    भगवान और माता-पिता की कृपा हमेशा आप पर बनी रहे। मातृदिवस की शुभकामनाएं।

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  6. सच है माँ के बारे में लिखना आकाश को पाने की ख्वाहिश है ...
    माँ अपने आप में एक रचना है ... उसके चरणों में हर कमी स्वीकार की जा सकती है बेझिझक .. बेखौफ ...

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