बिन बाबा के
बेटी
ना ब्याही जाये
बाबा के शिवाय
कोई बेटी को विदा ना कर पाये
बिन बाबा से गले मिले
बेटी से चौखट पार ना हो पाये
बाबा की कांपती हथेलियां
आशीष देंने के लिए उसके सर पर रुके
रुकते कदम बेटी का
फिरसे आगे बढ़ते जाये
बाबा का आशीर्वाद
जनम-जनम तक फले-फुलाए
बेटी के घर
बिन बाबा के
बेटी
ब्याही ना जाये।
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
सही पर हृदय स्पर्शी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हृदय स्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंसादर