तुमसे गुफ़्तगू करके
लगता है
मैं जन्नत में हूँ
बरसो की माँगी दुआ
जैसे
आज ही
मेरे कदमों में हो।
तुम खुशबू की तरह आती हो
मेरे फेफड़े में
और चली जाती हो जल्दी-जल्दी
कि जैसे शाम ढलनेवाली हो
अभी-अभी।
फिरभी एक सुकून भर के जाती हो
ह्दय में
कि तुम मेरे हो, सिर्फ मेरे..
जब तुम यह कहके जाती हो..
_रवीन्द्र भारद्वाज_