चलो
खुदसे
एक समझौता करते है
मुझे नींद आ जाये
कुछ ऐसा करते है
जो कुछ मुझे सताता है
तुम्हें नही
उससे तौबा करते है !
गली, नुक्क्ड़ पर
बारात आयी थी जो
कभी
प्रीत की
उसे विदा करते हैं
तुम हवा के साथ बहती हो
जैसा कि अजीज दोस्त हैं वो तुम्हारा
उसीके पास रख लो
-अपनी मेरी यादे-
खुदा से एक यही दुआ करते है !
_रवीन्द्र भारद्वाज_
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 26 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर मुझे स्थान देने के लिए अत्यंत आभार आपका 🙏 आदरणीया
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अनुज।
जवाब देंहटाएंसादर
आभार दी 🙏 सादर
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंआभार आपका 👍
हटाएंbahut hi sundar aur gehari rachna,
जवाब देंहटाएंabhar!
जी अत्यंत आभार आपका 🙏 सादर
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