शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

मुझे लेकर

तेरे जज्बातों के साये में काटनी थी 
ताउम्र
पर एक उम्र के बाद 
तेरे ख्यालात बदल गए 
मुझे लेकर

मुझे लेकर 
जिस तीव्र गति से चली थी तुम 
लगता था आसमान के पार जाकर ही रुकेंगे।

कहते है 
राख के नीचे शोले दबे होते है
मगर वो दिखते नही 
और ना ही वो गर्मी प्रदान करते है
कुछ ऐसे ही हम भी रुके है तुम्हारे पास 
ठिठुरते हुए।


~ रवीन्द्र भारद्वाज

सोमवार, 25 नवंबर 2019

महज नाम की मोहब्बत

निगाहों में 
तुम्हारी सूरत रही
और बाहो में मेरी जरूरत

हम घर से निकले तो थे 
बहुत दूर
पर 
नजदीकियों में समेट लिया तुमने मुझे 

ऐसे जैसे हम होते तो है 
आमने-सामने 
एक-दूसरे के 
लेकिन
रुके-रुके से कदम बढ़ाते है 

जैसे अबकी गले मिलना पड़ेगा 
वरना दम तोड़ देगी 
महज नाम की मोहब्बत।

- रवीन्द्र भारद्वाज

मंगलवार, 5 नवंबर 2019

एक नाव और एक नदी

एक नॉव थी 
एक नदी थी 

दोनों का रिश्ता आत्मीय था

अचानक से एक तूफान आया 
और नॉव डूब गई 

नदी खुदको माफ नही करती 
क्योंकि वो 
उसी में डूबा था 

और नॉव धंसकर भी 
नदी के छाती में 
धन्य समझता था 
खुदको 


- रवीन्द्र भारद्वाज


रविवार, 20 अक्टूबर 2019

नदियाँ सबकी होती है

 
एक नदी जो मेरे लिए ही बहती थी
निर्वाण के रास्ते पर चल दी है 

जबकि नदियाँ सबकी होती है 
और किसीकी भी नही होती है 

उसका मेरा रिश्ता इतना पावन है कि 
जैसे एक-दूसरे को छूना भी पाप है 

लेकिन सबकुछ यू खत्म हुआ 
जैसे सुनामी में वो बहती चली जा रही हो 
अपनी मर्जी से
और मैं बेबश खड़ा 
देखता रहा हूँ
उसे।


~ रवीन्द्र भारद्वाज



मेरे हाथ मे तेरा हाथ था

मेरे हाथ मे तेरा हाथ था
फिर अचानक से क्यों छुड़ा लिया हाथ तुमने

तुम क्यों बदलने लगी 
हद से ज्यादा

मैं पर्वत से कूदा था
एकमात्र 
तुम तक पहुंचने के लिए
लेकिन
अफसोस होता है 
क्यों कूदा
नाहक ही।

तेरे मेरे प्यार की कुंडली नही मिलती अब क्यो 
पहले तो ज्यादा गुणों से मिलता था न।


~ रवीन्द्र भारद्वाज

मंगलवार, 15 अक्टूबर 2019

तुम्हें पा लेते तो क्या होता !

तुम्हें पा लेते तो क्या होता !
शायद खोना पड़ता 
तुम्हें
एकदिन

तुम्हें नही पा सके तो 
क्या हुआ !
कम से कम 
खोने की नौबत तो नही आयी।

-- रवीन्द्र भारद्वाज

तुम्हे मतलब नही

तुम्हे मतलब नही 
किसीभी चीज से 
मैं जीऊ या मरू इस बात से भी नही 

खैर, इतना निर्दयी कसाई भी नही हुआ है 
मेरे चौक का 
जितना तुम हो गये हो 

इतना बेपरवाह वो पहाड़ नही है 
जिसके तरफ सुबह-सवेरे खिड़की खोलकर 
तुम देखती हो 
दो-चार मिनट एकटक 

हाँ, बेशक तुम शून्य में नही जीती हो 
लेकिन मुझे लेकर 
तुम इतनी अवचेतन हो गयी हो क्यो !


- रवीन्द्र भारद्वाज


सोचता हूँ..

सोचता हूँ.. तुम होते यहाँ तो  बहार होती बेरुत भी  सोचता हूँ.. तुम्हारा होना , न होना  ज्यादा मायने नही रखता यार !  यादों का भी साथ बहुत होता...