तेरे जज्बातों के साये में काटनी थी
ताउम्र
पर एक उम्र के बाद
तेरे ख्यालात बदल गए
मुझे लेकर
मुझे लेकर
जिस तीव्र गति से चली थी तुम
लगता था आसमान के पार जाकर ही रुकेंगे।
कहते है
राख के नीचे शोले दबे होते है
मगर वो दिखते नही
और ना ही वो गर्मी प्रदान करते है
कुछ ऐसे ही हम भी रुके है तुम्हारे पास
ठिठुरते हुए।
~ रवीन्द्र भारद्वाज
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (25-11-2019) को "गठबंधन की राजनीति" (चर्चा अंक 3537) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
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रवीन्द्र सिंह यादव
सुन्दर प्रस्तुति
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