सोमवार, 25 नवंबर 2019

महज नाम की मोहब्बत

निगाहों में 
तुम्हारी सूरत रही
और बाहो में मेरी जरूरत

हम घर से निकले तो थे 
बहुत दूर
पर 
नजदीकियों में समेट लिया तुमने मुझे 

ऐसे जैसे हम होते तो है 
आमने-सामने 
एक-दूसरे के 
लेकिन
रुके-रुके से कदम बढ़ाते है 

जैसे अबकी गले मिलना पड़ेगा 
वरना दम तोड़ देगी 
महज नाम की मोहब्बत।

- रवीन्द्र भारद्वाज

2 टिप्‍पणियां:

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