रविवार, 20 अक्तूबर 2019

मेरे हाथ मे तेरा हाथ था

मेरे हाथ मे तेरा हाथ था
फिर अचानक से क्यों छुड़ा लिया हाथ तुमने

तुम क्यों बदलने लगी 
हद से ज्यादा

मैं पर्वत से कूदा था
एकमात्र 
तुम तक पहुंचने के लिए
लेकिन
अफसोस होता है 
क्यों कूदा
नाहक ही।

तेरे मेरे प्यार की कुंडली नही मिलती अब क्यो 
पहले तो ज्यादा गुणों से मिलता था न।


~ रवीन्द्र भारद्वाज

2 टिप्‍पणियां:

  1. पर्वत से कूदने की लोई आवश्यकता नहीं है मित्र !
    उसकी याद में एक गीत लिखो, एक चित्र बनाओ,
    वो फिर आकर तुम्हारा हाथ थाम लेगी.

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