
जरूरी था के हम तुम कुछ बात कर लेते 
राज जो दिल में दबा रखा था हमने 
जरूरी था उसका खुलना.. 
आरज़ू नही बचें
ना कोई ख्वाहिश रही 
जबसे तुम फिसल गये 
मेरे आस-पास से 
काई पर पड़ते ही पैर की तरह 
बेबस है 
लाचार हो गई हैं जिन्दगी 
किसी एक के ना मिलने के वजह से 
नाहक ही 
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार 





 
 
